30 मई 2012


पुस्तक "स्त्री होकर सवाल करती है " (बोधि प्रकाशन )
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कवयित्री -अलका सिंह 
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अलका सिंह की लंबी कविता है "ए आदमी "!ये कवयित्री की उदारता है कि उसने कविता का शीर्षक "ओए आदमी नहीं रखा !कविता की औरत सख्त जान पड़ती है !वह मास्टरनी के रोल में है और मर्द को लतिया रही है लगातार !मर्द बेचारा लगातार सुन रहा है सिर्फ !कुछेक सवाल जो इस कविता में मर्द दे पूछे जा रहे हैं ,उनकी बानगी देखिए :
कौन हो तुम ?क्या है तुम्हारी जात ?कैसे रचते हो अपना संसार ?कैसे गुजरा मेरा कल देखोगे ?अकेले ही क्यों रचा संसार !तुम अस्थिर ,अशांत ,क्रोधित क्यों ?
ये सब सवाल मर्द के सामने हैं !मर्द बेचारा सुन रहा है !ये सारे सवाल एक तरफा हैं लेकिन सवालों में दम जरूर है !औरत सदियों से उकताई हुई है मर्द से !ये सवाल भी सदियों की देन हैं !कविता के बीच में खूबसूरत आत्म वार्तालाप भी है !औरत खुद ही से बात करती है !मसलन ,मैं इतिहास में विचर लूँ !तुम और हम अंजान !कभी शिवा ,कभी ईव ,कभी वैदेही सी मैं !तुम सृष्टि के सृजक और मैं ?तुम तप में लीन और मैं गृहस्थी में !मैंने अभी कहाँ कहा सब ?तुमने अभी कहाँ सुना कुछ ?मैं मरती रही ,मैं चुप रही !तुम्हारा साथ प्रश्न चिन्ह है !मैं रोज चिता पर बैठ परीक्षा देती हूँ !मैं सृष्टि तुम रचनाकार !गर्भ मेरा ,संतान तुम्हारी !देह मेरी ,शासन तुम्हारा !कष्ट मुझे ,श्रेय तुम्हें !
इतने सारे सवाल और इतना लंबा खुद से वार्तालाप !इस कविता को दो तीन बार पढ़ना पड़ता है !जितनी बार पढ़ेंगे ,उतनी बार एक नया सवाल सामने आ खड़ा होता है !उतनी ही बार औरत ज्यादा सताई हुई सी लगेगी !कुछ पाठक ,मर्द से सहानुभूति रख सकते हैं !वो ये सोच सकते हैं कि यही कविता एक मर्द की तरफ से लिखी गई होती तो सभी महिलावादी उसके पीछे पड़ गए होते और उसे स्त्री प्रताड़णा का इल्जाम सहना पड़ता !सारी धाराएँ उसके खिलाफ होतीं !सारे कानून उसे धकिया रहे होते !सारे प्रबुद्ध वकीलों के बावजूद उसका केस कमजोर पड़ गया होता !पूरी ज़िंदगी वह मर्द, मौत के बारे में सोचता ,पर औरत के बारे में नहीं सोचता !खैर ... !
अलका ने इस कविता को डूब कर लिखा है !कविता की औरत कोई मौका छोडना नहीं चाहती !तीनों कालों को साथ लेकर वह मर्द की क्लास ले रही है !मर्द को अगर उल्टे सवाल करने का मौका मिलता तो उसके सवाल भी जबरदस्त होते !मसलन ,ए चिड़चिड़ी औरत ?मुंह को लीपने वाली औरत ?बैठना इसके साथ ,चलना उसके साथ ?नैन मटक्का इससे ,मोहब्बत उससे ?पहले मोहब्बत ,फिर जिल्लत देने वाली औरत ?हाथ में मिट्टी के तेल का कनस्तर लेकर डराने वाली औरत ?कोई नहीं मेरे साथ ,सारे कानून तेरे साथ ?
ये सारी मर्द की खीझ होती !अगर उसे कविता में जवाब देने का मौका मिलता तो !
अलका ने अच्छी कविता लिखी है !बीच बीच में धाराप्रवाह के बावजूद कुछ ऊबड़ खाबड़ सा लगता है !खैर ये दिक्कत हरेक पाठक के लिए नहीं है !कविता में महत्वपूर्ण प्रश्नों का जमावड़ा है !एक पूरी की पूरी औरत की सोच कविता में काम करती है !इसमें अलका का क्या दोष अगर कविता की औरत हद से ज्यादा सतियाई हुई लगती है तो !कविता में एक मुकम्मल औरत सामने आ खड़ी होती है !उसके अधिकांशतः प्रश्नों से सहमत होना पड़ता है !हरेक बात से सहमत होना तो कम से कम इस ब्रह्मांड में मुश्किल है !
अलका की कविता को मैं एक बार फिर पढ़ूँगा !
कविता की याद रह जाने वाली पंक्तियाँ 
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गर्भ मेरा ,संतान तुम्हारी 
कष्ट मुझे ,श्रेय तुम्हें 
देह मेरी ,शासन तुम्हारा 
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-सीमांत सोहल 

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