27 अक्तूबर 2011

हंस /जून 1996 में प्रकाशित एक कविता

दोस्त 
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हमारे कंधे पर 
दबाव तो इस तरह का था 
मानो कोई हाथ 
किसी दोस्त का हो 


हम पीछे मुड़कर 
माजरा समझना भी चाहते थे 
हम निर्णय लेने में रहे 
वह कंधे बदलने में रहा 

1 टिप्पणी:

लीना मल्होत्रा ने कहा…

वाह बहुत सुन्दर लिखी है.