1 अप्रैल 2012

पुस्तक "स्त्री होकर सवाल करती है "में मीनाक्षी स्वामी की कविताओं पर समीक्षा सा कुछ !


पुस्तक "स्त्री होकर सवाल करती है "(बोधि प्रकाशन )
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कवयित्री -मीनाक्षी स्वामी 
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मीनाक्षी की औरत ट्रेन में बैठी है चुपचाप !बाहर पेड़ ,पहाड़ , नदियां पीछे छूट रही हैं !कितनी सदियाँ हो गईं औरत को ट्रेन में बैठे हुए ,ये औरत को भी नहीं पता !ये शायद समाज या फिर वक्त जानता है !इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि औरत खूबसूरत या बदसूरत !पढ़ी लिखी या अनपढ़ !कुंवारी है या शादीशुदा !इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि औरत ए सी कोच में बैठी है या नॉन ए सी में !भूखी है या प्यासी !मेकअप में है या बिना मेकअप के !साड़ी में है या सूट में !चप्पल में है या स्पोर्ट शूज में !ट्रेन सूपर फास्ट है या पसेंजर !खिड़कियों के शीशे काले हैं या सफ़ेद !कोच में कोई और भी यात्री है या नहीं !औरत ने अपनी नींद पूरी की भी है या नहीं !उसका अपने परिवार से संपर्क है भी या नहीं !उसके पास आगे के सफर के लिए जरूरी चीजें है भी या नहीं !
मीनाक्षी की औरत के लिए ये सब चीजें बेमानी हैं !उसके पास एक एक बक्सा है सदियों से जो अभी तक नहीं खुला !उपरोक्त वर्णित स्थितियों के बावजूद !उस बक्से में उस औरत के ख्वाब हैं !बक्सा बंद ,ख्वाब बंद !ख्वाबों को हवा भी नहीं लगी सदियों से !ख्वाबों की शक्ल देखना तो दूर !ख्वाबों का मूर्त रूप लेना तो और भी दूर !
औरत का बक्से पर हाथ है !ख्वाब भरे बक्से को कोई ले ना जाए !ख्वाब पूरे हों या ना हों ,बक्सा तो सुरक्षित रहे !बक्सा सुरक्षित रहेगा तो किसी दिन खुलेगा भी !खुलेगा तो ख्वाब भी बाहर आएंगे !औरत को उम्मीद है कि एक दिन ऐसा जरूर आएगा !जब दुनिया उसके ख्वाबों पर गौर करेगी !
मीनाक्षी की अन्य दो कविताओं में लड़कियों का जिक्र है जो पंजों के बल खड़ी होकर अमरूद तोड़ लेती हैं !अमरूदों के लिए वे दीवार फांद सकती हैं !लोहे के नुकीले फाटक उलांघ सकती हैं !अमरूदों को दुपट्टों में सहेजकर वे सोचती हैं कि उम्रभर इसी तरह अमरूद तोड़ती रहेंगी और इसी तरह एक दिन हमारे पैरों के पंजे इतने बड़े हो जाएँगे कि आकाश में हाथ मारकर इंद्र्धनुष नीचे खींच लेंगी और फिर उसका दुपट्टा बना लेंगीं !उस दुपट्टे में हर तरह के रंग होंगे !लाल ,पीला ,हरा वगैरा वगैरा !
ये दुपट्टे लड़कियों की खिलखिलाहटों की तरह बेपरवाह रहेंगे !जैसे लड़कियों की हंसी में कोई अनुशासन नहीं रहता ,उसी तरह उनके दुपट्टे भी कंधों पर गिरते उठते रहेंगे !मतलब दोनों बेपरवाह रहेंगे !
वक्त के साथ लड़कियां अनुशासित होंगीं और उनके दुपट्टे भी !वे भी कंधों से सरकना भूल जाएंगे !सुबह से शाम तक दुपट्टे अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे !वे लड़कियों के कवच बन जाएंगे ,अपनी उड़ानों को दफनाकर !
मीनाक्षी की तीनों कविताएं गध्यात्मक खूबसूरती लिए हुए हैं !कविताएं पाठ की तरह हैं !सीधे मन -मस्तिष्क में उतरती हैं !कविताएं साफ तस्वीरों की तरह हैं !एक -एक रंग पाठक देख सकता है ,समझ सकता है !कविताएं सीधे सवाल करती हैं जिनका जवाब देते नहीं बनता !कविताओं में जबरदस्त संप्रेषणीयता है !एक स्टेंजा में ही खत्म होती हैं !मीनाक्षी की तीनों कविताएं तीन मोतियों की तरह हैं जिनकी माला बनाकर कोई भी पाठक अपनी गले में पहन सकता है !
मीनाक्षी की याद रह जाने वाली पंक्तियाँ
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इंद्र्धनुष खींचकर अपना दुपट्टा बना लेंगीं
उड़ने को बेताब
दुपट्टों के पंख कटते चले जाते हैं !

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-सीमांत सोहल
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