14 अप्रैल 2012

सुमन केशरी की कविताओं पर कुछ


पुस्तक "स्त्री होकर सवाल करती है "(बोधि प्रकाशन )
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कवयित्री -सुमन केशरी 
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सुमन केशरी की कविता में एक सीता है और एक अहिल्या !अहिल्या का तो पता नहीं लेकिन सीता पाषाणों में जगह ढूंढ रही है !या तो वह पत्थर होना चाहती है या पत्थर होकर देखना चाहती है !वह अहिल्या की जगह शिफ्ट होना चाहती है शायद !अपनी मर्जी से या विरोध स्वरूप !विरोध किससे ?अपने पति श्री राम से !उसका रोष जायज है !अहिल्या को छुअन भर में ही जिला दिया और पत्नि के लिए चोदह बरस लगा दिए !पत्नि को जिलाने के लिए लंबी यात्रा और अहिल्या के लिए छुअन भर !सीता का यही रोष है !इसलिए वह पत्थर होना चाहती है !उसकी जीवित काया से तो एक पत्थर अच्छा !इसलिए वह पाषाणों में जगह तलाश कर रही है !अहिल्या सीता नहीं होना चाहती लेकिन सीता अहिल्या होना चाहती है !छोटी सी कविता में कई कहानियों की गुंजाईश पैदा कर दी है सुमन केशरी ने !
एक सीता और भी है रेगिस्तान में !उसके पास लौटा भर पानी है !चुनरी है !रोटियाँ हैं !इसके अलावा उसके पास ख्वाहिशें हैं !उम्मीदें हैं !रिश्तों का बोझ है !मोहब्बतों के निष्कर्ष हैं !उसने हथेलियाँ फैलाकर आँखों पर रख ली हैं !तेज धूप का असर कम कर लिया है !पूरी प्रकृती ,पूरी दुनिया के विरुद्ध खड़ी है वह !उम्मीदों को दफनाकर ,रिश्तों की टीस साथ लिए ,मोहब्बतों से पीछा छुड़ाकर !उसने तपती रेत पर घर बना लिया है !बिना छत ,बिना दीवारों वाला घर !पानी और रोटियाँ उसकी हिम्मत बनाए रखने के लिए हैं सिर्फ !चुनरी ओढ़ने के लिए नहीं है !अपने अस्तित्व का एहसास होता रहने के लिए है !इस घर में कोई आए तो ठीक ,ना आए तो ठीक !दस्तकों से परेशान उस औरत ने कोई दरवाजा नहीं रखा ! छतों का उसे उलाहना दिया जाता था ,इसलिए उसने घर की छत नहीं रखी ! ये सुमन केशरी की मजबूत औरत जो रेत पर बैठी है !चुनौती दे रही है ,पूरी दुनिया को ,पूरे समाज को !
तीसरी कविता में सुमन की औरत एक पृथ्वी है जो अनवरत चक्कर काट रही है !जैसे पृथ्वी घूम रही है वैसे ही औरत घूम रही है !चार पहर के बाद लगता है कि औरत सो गई होगी पर औरत की आँखों में नींद कहाँ !फिर चार पहर ओर बीतने के बाद यही लगता है !लेकिन औरत की आँखों में नींद नहीं है !औरत हमेशा जागती रहती है वैसे ही जैसे पृथ्वी अपना धर्म निभाती है !पृथ्वी के रुकने से सारी कायनात रुक जाएगी और औरत के सोने से सारा जीवन ठहर जाएगा !दोनों अपने धर्म का पालन कर रही हैं !एसा कई लोगों को लग सकता है कि औरत अपनी मर्जी से कम ,समाज की मर्जी से ज्यादा चल रही है !इससे औरत को एतराज भी नहीं है !औरत जागती है तो जीवन जागता है !औरत को डर है कि उसके सोते ही कहीं सारे राँझे और महीवाल बागी ना हो जाएँ !मारकाट ना हो जाए !अव्यवस्था ना पैदा हो जाए !इसलिए कितने भी पहर बीत जाएँ ,औरत नहीं सोती !
सुमन केशरी की तीनों कविताएं सांकेतिक हैं !नए तेवर ,नए मुहावरों से लैस !सुमन ,कविता का सिरा पकड़ाकर पाठक को कहती है आगे सोचना तुम्हारा काम !तीनों कविताएं तीन छोटे उपन्यास हैं जिनमें बेहिसाब कथाएँ बनती हैं !ये पाठक का मादा है कि वो कितनी कथाएँ देख पाता है !तीनों कविताएं तीन नोकाओं की तरह हैं जो आखिर एक ही बन्दरगाह पर जाकर लंगर डालती है !
सुमन केशरी की याद रह जाने वाली पंक्तियाँ 
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औरत ने 
ऐन सूरज की नाक के नीचे 
एक घर बना लिया 
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-सीमांत सोहल 
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