20 अप्रैल 2012

नन्द भारद्वाज की कविताओं पर कुछ


पुस्तक "स्त्री होकर सवाल करती है "(बोधि प्रकाशन )
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कवि -नंद भारद्वाज 
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नंद भारद्वाज जी की औरत धूसर बियावान में है जो खुद को जीने जिद में ढाल चुकी है !उसकी पैदाईश पर कोई खुश नहीं था !माँ की डूबती आँखें थीं तो पिता का अधबुझा ,गहराता सूनापन !सिर्फ दाई को उम्मीद थी कि ये लड़की अपना जोखिम जी लेगी !उसको जो खाना मिला खा लिया ,जो बर्ताव मिला सह लिया !गाँव गली में क्या चर्चा हो रही है ,इससे वो बेसुध रही !पहले घर संभाला ,फिर खुद को !कोई मजूरी वजूरी नहीं !ना ही कोई अपना आर्थिक वजूद !बरसों पहले भाई ,काम की तलाश में परदेस चला गया !काम में एसा खपा कि लौट के ना आ पाया !अब वह औरत माँ बाप की देहरी पर बोझ थी !उसने उलट -पलट कर सब देख लिया !अपने सपने ,सपनों का बिखरापन ,टूटन ,हताशा !यहाँ मोहब्बत तो दूर दूर तक कहीं नहीं थी !वही होती तो शायद उसकी सारथी बनती !उसका अन्तर्मन ताप बदलता रहा !ये एक टूटी और बुझी हुई औरत का लेखा जोखा है !बहुत सरलता और सहज तरीके से नंद जी ये बयान करते हैं !
दूसरी कविता पाकिस्तान की मुखतारन माई पर है !माई को अपने आँसू सहेज कर रखने हैं !उसको अपने आँसू उनके लिए बहाने का क्या मतलब जो उनकी अहमियत नहीं समझते !नंद जी ,माई को सलाह दे रहे हैं कि उन दरवाजों को मत पीटो !अपने हाथ जख्मी मत करो !क्योंकि यही हाथ और दरवाजे एक दिन तुम्हारी आत्मरक्षा में काम आएंगे !ये जो आग का दरिया तुम्हारे भीतर धधक रहा है ,उसे बचाए रखो !कहीं एसा ना हो की तुम खुद ही इसमें भस्म हो जाओ !
फिर नंद जी आगे कहते हैं कि अफसोस सिर्फ माई ही क्यों करे !आँसू सिर्फ माई ही क्यों बहाए !वो कोख भी तो रोए जिससे वहशी दरिंदे पैदा हुए !वो हवा भी तो शर्मिंदा हो जिसमें माई की आहें और सिसकियाँ शामिल है !वो धूप गुनाहगार क्यों नहीं है जो माई के पसीने के लिए जिम्मेदार है !वो छांव गुनाहगार क्यों नहीं है जो माई का पसीना सूखा नहीं पाई !वो बस्तियाँ क्यों ना शर्मिंदा हों जिनके सामने माई को बेइज्जत होना पड़ा !वो धूप ,वो हवा ,वो सूरज ,वो चाँद सब शर्मिंदा हों !
देवी -देवता क्यों ना शर्मिंदा हों जो अपने बंदों का कष्ट देखकर नंगे पाँव भाग उठते हैं !वो ईश्वर क्यों ना शर्मिंदा हो जिसके सामने उसकी ही कृति टूटती रही !माई शायद नास्तिक रही होगी ,तभी कोई देवदूत नहीं आया !माई गरीब थी तभी किसी अमीर ने ना देखा , ना सुना ,ना समझा !पूरी दुनिया ,पूरा समाज ,पूरी इंसानियत माई की गुनाहगार है !ये बात नंद जी ,अपनी कविता में जोरदार तरीके से कहते हैं !
नंद भारद्वाज जी की कविताएं सहज ,सरल ,कलात्मक गहराई लिए हुए हैं !नंद जी की कविताओं की तारीफ करना भी जोखिम भरा है !पाठक को पहले पकड़ने ,फिर गले लगाने वाली कविताएं हैं !कविताएं सुरूर की तरह चढ़ती हैं लेकिन पाठक डगमगाने की बजाय सजग रहता है !नंद जी की कविताएं वे टापू हैं जिनके ऊपर हेलीकॉप्टर उड़ाना आसान है लेकिन लैंड करना आसान नहीं है !एक बार सही तरीके से लैंड हो जाए तो फिर टापू छोडने को मन नहीं करता !
नंद जी की याद रह जाने वाली पंक्तियाँ 
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उन बंद दरवाजों को पीटते 
और जख्मी होने से रोक लो माई 
इन्हीं पर एतबार रखना है अपनी आत्मरक्षा में 
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-सीमांत सोहल 
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