27 अप्रैल 2012


पुस्तक "स्त्री होकर सवाल करती है " (बोधि प्रकाशन )
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कवयित्री -अनीता कपूर 
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अनीता कपूर की औरत, आकर्षण को लेकर गहरे चिंतन में है !वह किसी से भी बात कर सकने की घटना को संबंध मानती है !चाहे संबंध का स्तर कैसा भी हो !आखिर संबंध तो संबंध होता है !लेकिन एक बात तय है !अनीता की औरत तन से ज्यादा ,मन के संबंध को तरजीह देती है !वह तन के खिंचाव से ज्यादा मन के खिंचाव को रेखांकित करती है !मन के संबंध से बेपरवाह सी सुगंध आती है !आँखों पर बात करने से बेहतर ,आँखों में डूबना अच्छा !किसी को दिलासा देने से बेहतर ,उस पर मर मिटना अच्छा !किसी के दुख में शामिल होने से बेहतर ,उसके दुख को अपना मान लेना !उसके चेहरे पर आती धूप को रोकने के लिए ,छाता ढूँढने से बेहतर ,अपनी हथेलियाँ आगे कर देना अच्छा !उसके जिस्म से ज्यादा उसकी रूह को देखना !
ऐसा अगर हो जाए तो अनीता कपूर ऐसे संबंध को पूर्ण संबंध कहती हैं !फिर वो संबंध चाहे कितना ही बेगाना हो ,कितना ही अंजाना हो !
अनीता की औरत ये भी कहती है कि तुम अपने कदमों के निशान अपने साथ लेते जाओ !क्या ये संभव है ?अपनी परछाईया साथ लेते जाओ !अपनी सांसें साथ लेते जाओ !यादों के जल जाने के बाद जो राख़ बची है ,वो भी साथ लेते जाओ !क्या ये संभव है ?कतई नहीं !ये जिज्ञासा मेरे नहीं ,अनीता की औरत की है !अगर ये संभव नहीं है तो फिर उस दिलबर को भूलना और उसकी यादों से पीछा छुड़ाना कैसे संभव है ?जब ये मालूम ही नहीं कि उसकी साँसे कौनसी हैं और कौनसी मेरी ,तो कैसे कहा जाए कि अपनी साँसें लेते जाओ !जब उसकी याद तो क्या ,यादों की राख़ से भी मोहब्बत हो तो कैसे कहा जाए कि राख़ ले जाओ !जब परछाईओं में फर्क ही नहीं ,तो अपनी परछाई उससे कैसे अलग की जाए ?
अनीता की औरत शिकायत में सवाल करती है कि मैं तेरी कौन लगती हूँ !ये सवाल उस दिलबर से है जिसकी गलियों की हवा ,रूह तक आ पहुंची है !जिसकी आवाज की खुशबू ,मन को सरोबार कर रही है !वह असमंजस में है कि वो खुदा का बंदा उसका लगता क्या है और ये नाचीज उसकी है है कौन ?
ये सब अनीता की औरत की मन की घटनाएँ हैं !
अनीता कपूर की कविताएं कुछ कुछ सूफियाना हैं !कविताओं में आई औरत की सोच भी सूफियाना है !कविताओं को पढ़कर अधूरी प्यास भूझती है !कभी कभी लगता जरूर है कि प्यास ओर बड़ी होती और उसके भूझने की अवधि ओर छोटी !पाठक को अगर पित्त दोष है तो ये कविताएं ठंडे पानी का काम करती हैं !
अनीता कपूर की याद रह जाने वाली पंक्तियाँ 
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तेरी आवाज की एक खुशबू 
दिल के दरवाजे को धकेल मेरी रूह को सरोबार कर गई 
मैं तेरी कौन लगती हूँ ?
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-सीमांत सोहल
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