6 मई 2012


पुस्तक "स्त्री होकर सवाल करती है " (बोधि प्रकाशन )
-----------------------------------------------------------
कवयित्री -अर्पिता श्रीवास्तव 
----------------------------------------------------

अर्पिता श्रीवास्तव की औरत भारी भरकम इच्छाएँ पाले हुए है !उसे लंबा सफर तय करना है ,गुलाबी होठों की प्यास से विचलित हुए बगैर !वह धरती के रहस्यों को अपने भीतर समेटे हुए है !वक्षों में उफनती नदियां हैं जिन्हें उन बाजुओं का इंतजार है जिनमें अपनत्व भरी जकड़न हो !जकड़न में वृक्ष जैसी गहराई हो !उन वक्षों को ऐसे बाजुओं की जरूरत है जो असंख्य ज्वालामुखियों को शांत कर सकें !अर्पिता की औरत को ऊफान के भीतर भी एक ऊफान चाहिए ,जिसमें गर्दो -गुबार सब धूल जाएँ !रोशनी का फव्वारा फूटे 1एक तना हुआ इंद्रधनुष हो ,जिसके एक तरफ वो हो और दूसरी तरफ उसका दिलबर !
अर्पिता की औरत "ये दिल मांगे मोर "वाली औरत है !जिसकी इच्छाएँ विशाल हैं !जिसे समाज ,दुनिया की परवाह नहीं है !जिसे रस्मों रिवाज से कुछ लेना देना नहीं है !वो अपने दिलबर के लिए कंजरी बनने को भी तैयार है !मैं यार मनाणा नी ,चाहे लोग बोलियां बोलें ,वाली औरत !
वो औरत मजबूत बाजुओं को महत्व देती है !उसे मजबूत बाजुओं वाला दिलबर चाहिए ,अक़्लमंद और खूबसूरत नहीं !फिर चाहे ,उस दिलबर की मोहब्बत का मीटर कैसा भी हो !ये अर्पिता की औरत का अनोखा रूप है जिसे कोई दूसरी औरत पचा भी सकती है और नहीं भी !वैसे अर्पिता की औरत का भी कसूर नहीं है !मोहब्बत में अक्ल की क्या जरूरत ?अक़्लमंद आदमी चिंतन करता है मोहब्बत नहीं !उसे मालूम नहीं रहता कि मोहब्बत की चिड़िया किस मुंडेर पर बैठती है !वो इस चिड़िया को किताबों में ढूंढता रहता है !
अर्पिता की औरत मोहब्बत में है !वो अपने आप में नहीं है !उसे नहीं मालूम वो क्या चाह रही है !मोहब्बत में वैसे ही आँखों की द्रष्टि कम हो जाती है !इसीलिए उसकी निगाह बाजुओं तक ही सीमित रहती है !
अर्पिता की औरत बिगड़े हुए वर्तमान की औरत है जिसे सिर्फ मोहब्बत से मतलब है ,मोहब्बत की शक्ल से नहीं !बाजुओं से मतलब है ,दिल से नहीं !मकान से मतलब है ,घर से नहीं !
इसके अलावा अर्पिता की, औरत को परिभाषित करती सात छोटी छोटी कविताएं हैं !जिनमें औरत नदी और धरा की तरह है !बाजार की चाह में सँवरती है !अलंकारों के बासीपन से खीझी हुई !खुद के लिए जीना चाहती हुई !झाड़ू पोंछा करती हुई !ये सोचती हुई कि उसने अपनी माँ से भी लंबा फासला तय किया है !
अर्पिता की कविताएं उस गाँव के नजदीक पहुँच गई लगती हैं जिसका नाम "अच्छा काव्य "है !कविता में कुछ खूबसूरत विरोधाभास हैं जिनका कलात्मकता से कोई गठजोड़ नहीं है !छोटी कविताएं ,कम कडक वाली चाय के छोटे प्यालों की तरह हैं !पेट की अम्लता के बावजूद लगता है ,काश कुछ प्याले ओर होते !
अर्पिता श्रीवास्तव की याद रह जाने वाली पंक्तियाँ
--------------------------------------------------------

मुझे प्रेम के उफनते गोतों में वो उफान चाहिए
जिसकी
एक छोर को पकड़े तुम हो और एक तरफ मैं
----------------------------------------------------------

-सीमांत सोहल
==========

कोई टिप्पणी नहीं: