24 मार्च 2012

समीक्षा


पुस्तक "स्त्री होकर सवाल करती है "(बोधि प्रकाशन )
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कवि -विमलेश त्रिपाठी
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विमलेश त्रिपाठी की कविताओं में औरत का खूबसूरत चित्रण हुआ है !सिंदूर की डिबिया ,काजल ,परफ्यूम ,ब्लाउज ,पीली साड़ी !ये सारी चीजें कविता में बड़ी खूबसूरती के साथ फिट हैं !जैसे किसी साँचे में सारे औज़ार अपनी सही जगह पर रखे हों !पुरुषों के अत्याचार ,दफ्तर की घूरती आँखें ,कमरे की घुटन में परफ्यूम ,पीली साड़ी का सुरक्षा कवच !इन सब चीजों को मिलाकर विमलेश एक औरत बनाते हैं जो याचना में पति के सामने खड़ी है ,बाहर जाने के आज्ञा मांगते हुए !
विमलेश की औरत जौहर से बची हुई औरत है जो अपनी पहचान से बच रही है और सुरक्षित जगह की तलाश में है !किवाड़ों के भीतर वह चुपचाप सिसकती है !उस पर बच्चे जनने का जबरदस्त दबाव है !
विमलेश की औरत जो कह रही है वो इल्जाम नहीं है !वह एक -एक लफ्ज से मुक्त होने की कोशिश में है और कायदे से मनुष्य होने में प्रयासरत है !
अक्सर कवि औरतों को प्रेमिकाओं के रूप में देखते हैं या पत्नियों के रूप में !विमलेश ने उन्हें बहनों की शक्ल दी है !
सारी बहनें एक -एक कर शादी करके चली गईं हैं !वे वापिस आती है कभी -कभार ,अपने सवालों के साथ !सवाल भी इस तरह के कि उन सवालों से किसी को कोई असुविधा न हो !उनके जवाब मिल जाएँ तो ठीक ,ना मिलें तो ठीक !
ये बहनें एक कोने से उठाकर दूसरे कोने में रख दी गईं हैं !अपनी फटी हुई कापियाँ और अधूरे चित्र पीछे छोड़ गई हैं जिन्हें पूरा करने का किसी के पास वक्त नहीं है ,ना ही किसी को जरूरत !उनके लिए कई बार पगड़ी दांव पर लग जाती है !वे बेमतलब पैदा होती हैं !अच्छे पिता मजबूरन मान लेते है कि वे अपना भाग्य साथ लेकर आती हैं !रसोई घर में उनकी अंगुलियों के निशान हैं !वे तेल की कटोरियाँ छोड़ गई हैं जिनसे सर में इतना तेल लगाती थीं कि तेल चूता हुआ ,कानों के नीचे तक आ जाता था और उनकी आँखें मिची -मिची सी दिखती थीं !वे जब कभी ज़ोर से हँस देती थीं तो उनकी हँसी पर पाबंदी लग जाती थी !अपने भाईयों के लिए लंच बॉक्स तैयार करती थीं !वे अब ऐसी दुनिया में चली गई हैं जहां से लौटना लगभग नामुमकिन है लेकिन उनकी राखियां बराबर आती हैं !वे खुद आती भी हैं तो जल्दी लौट जाने के लिए !उनके झुर्राए चेहरे हमसे गहरे सवाल करते हैं !हमारे पास कोई जवाब नहीं होता !अपने आंसुओं की परवाह किए बगैर वे अपने भाईयों के आँसू पोंछती हैं !वे सिखाती हैं कि पाक मोहब्बत क्या होती है !
अंत में विमलेश औरत को पृथ्वी कहते हैं जिसके लिए वह अंतहीन लड़ाई लड़ने को तैयार हैं !वैसे भी हम पर्यावरण के लिए पृथ्वी को ही बचा रहे हैं !
विमलेश के पास कविता कहने की जबरदस्त टेक्नीक है !सारे शब्द ,सारी पंक्तियाँ सही जगहों पर फिट हैं !किसी को भी उठाकर इधर- उधर करने की जरूरत महसूस नहीं होती !पंक्तियाँ ,बोलती दिखती हैं !विमलेश की कविताएं उस बहती हुई बड़ी नदी की तरह हैं जिसका एक -एक पत्थर साफ दिखता है !जिसके किनारे कोई खरपतवार नहीं है !कोई भी पाठक मुँह पर छींटे मारे बगैर या चार घूंट पानी पिए बगैर नहीं निकलता !
कविताओं में छोटे -छोटे काफी स्टेंजा हैं जो अपनी बहुतायत की उपयोगिता साबित करते हैं !तीनों कविताएं कलात्मकता से लबालब हैं !खुद आत्मा तृप्त महसूस करती है !
विमलेश की याद रह जाने वाली पंक्तियाँ
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इस तरह इतिहास की अंधी सुरंगों के बाहर
वे मनुष्य बनने की कठिन यात्रा कर रहीं हैं
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- सीमांत सोहल 

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